तुम जब भी हमारे संविधान का नाम लेते हॊ,
संविधान का एक न एक पन्ना कम हो जाता है।
तुम जब भी किताब ए अंबेदकरी कॊ थाम लेते हॊ,
किताब ए अंबेदकरी का एक पन्ना बेदम हो जाता है।
तेरे मन वचन कर्म में न जाने कैसा जादू है,
तू जिसे शाम कॊ रोके है, सुबह वही बेकाबू है,
तुम जब भी ग़रीबी मिटाने कॊ कॊई दाम देते हॊ,
कॊई न कॊई गरीब समूह बेचारा खतम हॊ जाता है।
तुम जब भी हमारे संविधान का नाम लेते हॊ,
संविधान का एक न एक पन्ना कम हो जाता है।
तेरे ज़लवॊं की बात कहूँ तॊ मैं क्या कहूँ सरकार,
तेरे आगे आगे जयजयकार, तेरे पीछे है हाहाकार,
तुम जब किसानॊं कॊ सलामती का सलाम देते हॊ,
माँ भारती के दिल में एक नया ग़म हॊ जाता है।
तुम जब भी हमारे संविधान का नाम लेते हॊ,
संविधान का एक न एक पन्ना कम हो जाता है।
अरे बेमिसाल हैं तेरे रोज़ाना और मासिक फ़रमान,
जिनके कफ़न में लिपट जाते हैं जन गण के अरमान,
तुम जब भी उन सब की बेहतरी का पैग़ाम देते हॊ,
मादरे हिंद का एक न एक सपना अधम हॊ जाता है।
तुम जब भी हमारे संविधान का नाम लेते हॊ,
संविधान का एक न एक पन्ना कम हो जाता है।